प्रभात गंगा संवाददाता
एक दिवसीय आन लाइन राष्ट्रीय वेबिनार जिसका विषय "दत्तोपंत ठेंगड़ी, विचार-दर्शन" का आयोजन तपोभूमि विचार परिषद मेरठ द्वारा किया गया। आयोजन के विषय में बताते हुए प्रांत संयोजक अवनीश त्यागी ने कहा, कि यह वर्ष दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के जन्मशताब्दी वर्ष के रूप में प्रज्ञा प्रवाह की मेरठ इकाई तपोभूमि विचार परिषद मना रही है। लाक डाउन के रहते भारतीय शोघ केंद्र जे.वी. जैन कालिज सहारनपुर का उद्घाटन शेष है। लेकिन यह मंच आन लाइन गतिविधियों के माध्यम से महापुरुषों के विचार समाज के सामने रख रहे हैं। आज इसी विचार को लेकर विश्व के बड़े मजदूर संगठन एवं अन्य संगठनों के जनक दत्तोपंत ठेंगड़ी विचार दर्शन पर प्रोफेसर राकेश सिन्हा जी ने विचार रखा है। कार्यक्रम में राष्ट्रीय सहसंयोजक श्रीकांत काटदरे, क्षेत्रीय संयोजक भगवती प्रसाद रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रांत अध्यक्ष डॉ एल. एस. विष्ट ने की।
वेबिनार में राज्यसभा सांसद प्रोफेसर राकेश सिन्हा ने दत्तोपंत ठेंगड़ी जी द्वारा चलाए मजदूर आंदोलन पर पश्चिम के प्रभाव को खत्म करके भारतीय परिवेश में आने का आह्वान किया था। "दुनिया के मजदूरों एक हो" पर वर्ग संघर्ष के विचार को बदलकर "मजदूरों दुनिया को एक करो" विचार को दिशा दी। उन्होंने १९५५ में भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की। उन्होने १९५५ से बढते हुए १९७० तक आकर इसे दुनिया के प्रथम स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया। इसे वामपंथियो ने नकारते हुए इसको दक्षिणपंथी कहकर निंदा भी करते रहे थे। दत्तोपंत जी के निधन के बाद विपरीत विचार धाराओं वाले सभी वरिष्ठ नेताओं ने कहा,कि दत्तोपंत जी ने कभी झण्डे का रंग का रंग कैसा था, इसकी चिंता न करते हुए हमेशा मजदूरों की बात करते हुए सबसे बडे नेता बने। उन्होंने कहा था, हमारे पास ऐसा व्यक्तित्व हैं, जो आदिकाल से अनंत काल तक पानी पी रहा है। सीटू ने उनके निधन पर कहा,कि यह हमारी व्यक्तिगत क्षति है, हमारी सभी समस्याओं का हल उनके पास था। एक उदाहरण देते हुए कहा, कि फैक्ट्री मालिक द्वारा भेजी गई गाड़ी में न बैठकर मजदूरों से मिलने रिक्शा पर गये, जिसका कारण फैक्ट्री मालिक के प्रति उदारता एवं कृतज्ञ होना बताया, जबकि मूल उद्देश्य मजदूरों के लिए संघर्ष करना था।
उन्होंने आगे बताया,कि सार्वजनिक जीवन को कटीले रास्तों में सुखद देखना होता है, वे संगठन की जिला या निचली इकाई तक के कार्यकर्ताओं को जो सुविधाएं उपलब्ध है, मजदूर नेताओं को मात्र वे सुविधाएं अपनानी चाहिए।
उन्होंने आगे कहा, कि "ह्रदय से ह्रदय में स्पंदन" होना चाहिए, जिससे मूल्यों का संवर्धन होता है, आत्मनिर्भरता होती है। थर्ड वे पर बोलते हुए कहा, कि दुनिया में नौ उदारवादी विचारधाराएं है। जिन देशों ने मुक्त व्यापार की बात की थी। मुक्त व्यापार और सरकार के अधीनस्थ व्यापार पर बोलते हुए कहा,कि संस्कृति, परिवार के मूल्यों को रखते हुई जो नीति बनती है उससे न व्यापार बिखरता है और न ही संस्कृति बिखरती है।
उन्हें दुख होता था, कि १.२ बिलियन लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं। निजी उद्योग सरकार से अपेक्षा रखते हैं। यहां दत्तोपंत जी चाहते थे,कि नीति ऐसी हो, जो लम्बे समय तक रहे। जनता के मूल्यों आदर्शों को लेकर अर्थव्यवस्था चलनी चाहिए। ग्लोबलाइजेशन में भगवान ने भारत को केंद्र में रहने का अवसर दे रखा है।
दत्तोपंत जी राज्यसभा के सदस्य रहते हुए १९६५ में एएमयू-जेएनयू पर बहस में भागीदारी की, धार्मिक संस्था एवं व्यक्तियों के नाम पर विश्वविद्यालयों के नाम न रखने के पक्षधर थे। प्रश्न करने पर यह प्रश्न मुख्य विषय से सम्बन्धित नहीं है, यह कहकर सरकारें निरूतर हो जाती थी।
स्वदेशी पर बोलते हुए कहा,कि स्वदेशी का अर्थ दृष्टिकोण! जिसमे संस्कृति का बोघ होता है। इसमें घृणा का स्थान नहीं, अपने स्व: को पहचानना और दुनिया को देखना है। यदि जूते की दुकान पर साइज यूके-९, १० देखने में आता है, तब भारतीय व्यक्तियों के पैरों में जूते यूके के होने का दृष्टिकोण ही स्वदेशी है। दत्तोपंत ठेंगड़ी जी अनेक वर्षों तक राज्यसभा में रहने के बावजूद गर्मियों में कूलर-एसी की इच्छा नहीं रखना एक विशेष भाव दर्शाता है।
समता और समरसता के भाव को बताते हुए कहा,कि समता विचार में समान और उसके प्रयास, या कहें,कि भौतिक बराबरी जैसे रूप में समझ सकते हैं। जबकि समरसता गैर बराबरी के कारणो को अपनी विकृति मानते हैं। विकृति के परिणाम अध्यात्म, सांस्कृतिक, मन पर पड़ते हैं। बाबा साहब अंबेडकर जी के विचारों को समाज के हर वर्ग तक पहुंचाना चाहते थे। उन्होंने पांच फूल ज्योतिबा फुले, शाहूजी महाराज, संत गार्गे, डॉ हेडगेवार, डॉ भीमराव अंबेडकर जी बताये।
उन्होंने आगे कहा,कि दत्तोपंत ठेंगड़ी जी अजात शत्रु की तरह है। साम्राज्यवादी ताकतों के कारण जनता के साथ धोखा को समझना होगा। अन्याय सामंतवाद है जो वंचित रखता है। जिसका तात्पर्य सामाजिक अंतर को कम करना था। सन २००२ में एक कार्यकर्ता ने उनसे कहा था, कि आपको देखने से आर.एस.एस ही दिखाई देता है।
दत्तोपंत जी कहते थे, कि संघ कार्य युगों से भी आगे जायेगा! तरंगें गंगा का हिस्सा है, तरंगों का हिस्सा गंगा नही हो सकती! संघ कार्य के लिए कार्यकर्ताओ को आत्मविलोपी होना जरूरी है, सीखने की प्रवृत्ति जरूरी है। उनका कहना था,कि सत कर्म करो जगत से विदा लो। वे अपनी जीवनी लिखने की मना किया, वे चाहते थे,कि उनका कोई स्मारक नहीं बने। उनका जीवन रहते हुए, उनका जीवन चरित्र नहीं लिखा गया। दत्तोपंत जी ने पद्मश्री न लेते हुए कहा,कि मैं इसे न स्वीकार करता हूं और अस्वीकार करता हूं। मेरे से पहले अनेक विभूतियां हैं, उन्हें अवार्ड नहीं दिया गया है, तब मैं कैसे स्वीकार करूं।
संघ शाखा पर कहते हुए कहा,कि मैं शाखा से अलग नहीं रह सकता। जिस पर प्रात: स्मरण जैसे उदाहरण देकर समझाया गया।
उन्होंने मुख्य तीन बिंदुओं पर विचार आगे रखते हुए कहा,कि पहला विचार समानता समरसता आधारित है, जिसमें पूंजीकरण नहीं, अपितु पूंजी और पसीना समान है। ७६% संसाधनों का प्रयोग १% करते हैं। दूसरा भारतीय समाज में रिलीजन संस्कृति में विभेद न होकर एक प्राण वायु है। संस्कृति सभ्यता की प्राण वायु है। तीसरे बिंदु पर विचार व्यक्त करते हुए कहा,कि पूरे भारत में कार्य ब्लू प्रिंट आधारित नहीं होना चाहिए, अपितु समाज केंद्रित होना चाहिए।
उन्होंने दत्तोपंत जी के विचार को रखते हुए कहा,कि लोक शक्ति को हमें मजबूत करना होगा, जिससे संघ शक्ति के सामने नतमस्तक हो। राजनीति पर लोकशक्ति का नियंत्रण जरूरी। विनोबा भावे जी के वृतांत पर कहा,कि हमें आचार्य शक्ति को एकजुट करना पड़ेगा।
कार्यक्रम के अंत में कुछ प्रश्न किये गये, जिसमें दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के विचारों में अंबेडकर जी से निकटता और गांधी जी से कितना मिलने का जवाब देते हुए कहा,कि हम वाद को महत्व नहीं देते, स्वावलंबन, स्वदेशी, और अस्पृश्यता संघ के निहित हैं। एक अन्य प्रश्न,कि आज के परिपेक्ष्य में विदेशी निवेश, वर्तमान में हिंदूत्व की परिभाषा, वर्ड आर्डर के इंडियन आर्गेनाइजेशन, स्वदेशी, स्वावलंबन की मूल विचारधारा, कुछ व्यक्तिवादी प्रश्नोत्तरी का कूशलतापूर्वक संतोषजनक उत्तर दिया गया।
अन्त में उन्होंने राजनीति के उद्देश्य के संदर्भ में चाणक्य के विचार को रखा, कि "सत्ता सुख न अपनाकर भारत को आगे बढाना होगा"! उन्होंने कहा,कि गरीब दया पर निर्भर है, यह अंतर एक और दस का होना चाहिए, समाज राज्य पर नहीं, समाज स्वयं आत्म निर्भर होना चाहिए।
अध्यक्षीय समापन वक्तव्य तपोभूमि विचार परिषद के प्रांत अध्यक्ष डा एल.एस.विष्टजी द्वारा रखा गया।
तपोभूमि विचार परिषद द्वारा आयोजित कार्यक्रम के संयोजक प्रोफेसर वीरपाल सिंह शोघ संयोजक तपोभूमि विचार परिषद, सहसंयोजक एवं मंच संचालन डॉ प्रवीण तिवारी संयोजक प्रज्ञा परिषद, एवं डॉ अंजलि वर्मा देवभूमि विचार मंच के अतिरिक्त तपोभूमि विचार परिषद से प्रांत संयोजक अवनीश त्यागी, सचिव डॉ चंद्रशेखर भारद्वाज, सहसंयोजक अनुराग विजय, डॉ वकुल बंसल प्रज्ञा परिषद से डा आदर्श, डॉ पूनम तिवारी, डॉ वीके अग्रवाल, डॉ योगेश, देवभूमि विचार मंच से अध्यक्ष डा चैतन्य भंडारी अल्मोडा, संयोजक डॉ सकलानी जी, डॉ देवेश हल्द्वानी, डॉ ऋचा देहरादून, विवेक, कैलाश बागेश्वर के अतिरिक्त मेरठ से डॉ नितिन, डॉ संजीव, डॉ राजीव, डॉ अमिता, डा जीआर गुप्ता बिजनौर, डॉ जितेंद्र मुरादाबाद, पंकज कुमार सहारनपुर, डॉ हैवेंद्र मोदीनगर, नागपुर से डा सुनील जी, मुम्बई विदर्भ प्रांत से सुभाष लोहे, सुमित चौधरी, जबलपुर से आशीष जी, गुजरात भारतीय विचार केंद्र से ईशान, ध्वनिल अहमदाबाद, भारतीय विचार केंद्र केरल से संदीप जी, हिमाचल से डा लाल सिंह, दिल्ली से डा गीता भट्ट, शुभ गुप्ता, डॉ पीयूष कमल, बिहार से विजय, डॉ सचिन अलीगढ़, साना मैत्रम इम्फाल मणिपुर, अजिम गोवा, डॉ राम रूड़की, डॉ वार्ष्णेय मुजफ्फरनगर, कुमुद नजीबाबाद, डॉ प्रदीप रामपुर, डॉ दिनेश नोएडा, योगेश शर्मा गाजियाबाद, डॉ संजीव त्यागी मेरठ, डॉ योगेंद्र सहारनपुर, डॉ विकास शामली, ए.के.दूबे गाजियाबाद, डॉ अमित अवस्थी नोएडा, डॉ अनिल जैसवाल अमरोहा, डॉ राजू रामपुर आदि सहित अनेक शुभचिंतक रहे, २३५ से २५० पहले लिंक में एवं लगभग नौ हजार विद्वितजन लाइव लिंक से जुडकर सहभागी बने।
कार्यक्रम की सफलता में तन-मन से नि:स्वार्थ सभी सहयोगी विद्वितजनो को हार्दिक शुभकामनाएं!
अवनीश त्यागी(प्रांत संयोजक) तपोभूमि विचार परिषद