आखिर कहा गई लोहड़ी मांगने की रस्म


दे माई लोहड़ी तेरी जीवे जोड़ी


हुक्का वे हुक्का ए घर भुक्खा


 प्रभात गंगा संवाददाता


त्योहारों और समारोहों का देश भारत। जहां हर दिन त्योहार के रूप में मनाया जाता है, वही  धीरे-धीरे त्योहारों के बदलते परिवेश में युवा पीढ़ी इसकी महत्ता से अनभिज्ञ होती जा रही है।     लोहड़ी के पारंपरिक त्यौहार पर अब सुंदर मुंदरिए की गूंज नहीं सुनाई देती है। गीत के माध्यम से इस ऐतिहासिक त्योहार को बताने वाला दुल्ला भंट्टी का गीत गाते नौजवान व नन्हें बालक अब गली-मोहल्लों में कम ही देखने को मिलते है। एक समय था जब बच्चे घर घर जाकर गाना  गाते थे और लोहड़ी मांगते थे ---- 
लोहड़ी मांगने का रिवाज हो रहा लुप्त
 त्योहार की परंपरा के अनुसार जब तक गाकर लोहड़ी न मांगी जाए मजा नहीं आता। बचपन में तो बहुत बार लड़कों के ग्रुप बनाकर लोहड़ी मांगी है,घर घर जाकर कहा जाता था ---- --दे माई लोहड़ी तेरी जीवे जोड़ी  और जहाँ प्रशाद कम मिलता था उसे चिढ़ाने को कह जाते थे हुक्का वे हुक्का ये घर भुक्खा     
  लेकिन आज कल लोहड़ी मांगने  का रिवाज लुप्त होता जा रहा है और समाज में इसे बुरा माना जा रहा है। लोग अपने परिवार में अथवा समारोह कर इस त्योहार का आनंद ले रहे हैं। इस त्यौहार पर डीजे की धुन हावी होती जा रही है और इसे मनाने के तरीका भी अब आधुनिकता होता जा रहा है। लोहड़ी के त्योहार के पीछे अतीत की कौन सी यादें जुड़ी हुई हैं, के बारे में भी ज्यादातर युवा अंजान ही हैं।
खुशी से जुड़ा है लोहड़ी का त्योहार
 लोहड़ी का त्योहार खुशी से जुड़ा हुआ है। पहले पहल लोग लड़कों की शादी अथवा लड़के के पैदा होने की खुशी लोहड़ी के रूप में मनाते हैं, लेकिन अब लोग हर खुशी को एक दूसरे से बांटते हैं। वे त्यौहार को शाम को अलाव जलाकर मूंगफली, गच्चक व रेवड़ियों के साथ ही मनाएंगे।
डीजे पर दोस्तों के साथ थिरकेंगे
सागर  का कहना है कि भट्ठी में दाने भुनाने की रस्म अथवा हिरण की टक्कर मारने की बात अब लोग भूल चुके हैं। वे इस त्यौहार को डीजे की धुन पर दोस्तों के साथ मनाएंगे। नाच गाने के बाद खाने की दावत का लुत्फ उठाकर त्यौहार मनाया जाएगा।
ये है लोहड़ी का इतिहास
होशियारपुर : पुरानी प्रथा और परंपरा के अनुसार इस दिन लोहड़ी के गीत सुनना व गाना शुभ माना जाता है। पर अब यह लुप्त हो रहा है। लोहड़ी के बारे में एक प्रचलित कथा यह है कि इस दिन श्रीकृष्ण का वध करने के लिए कंस ने लोहिड़ी नामक राक्षसी को गोकुल भेजा था। श्री कृष्ण ने खेल खेल में लोहिड़ी को मार डाला था। उस दिन से लोहड़ी पर्व की शुरुआत हुई। पंजाब में लोहड़ी को दुल्ला भंट्टी की कथा से जोड़ा जाता है। गाजीपुर (पाकिस्तान) में एक गरीब ब्राह्मण की पुत्री सुंदरी पर गंजीबार का शासक मोहित हो गया और उसने ब्राह्मण को बेटी राजा के दरबार में पेश करने का आदेश दिया। राजा के डर से ब्राह्मण जंगल में छुप कर रहने लगा और उस समय के मशहूर मुस्लिम डाकू दुल्ला भंट्टी के पास फरियाद लेकर गया। दुल्ला भंट्टी ने सुंदरी को अपनी बेटी मान कर एक ब्राह्मण युवक की तलाश कर सुंदरी का हाथ उसके हाथ में सौंप दिया व खुद पिता के फर्ज निभाए। दुल्ला भट्टी ने युवक को दहेज के नाम पर तिल और शक्कर देकर कन्यादान किया। गंजीबार के शासक ने दुल्ला भंट्टी को मारने का आदेश दिया, लेकिन राजा मकसद में असफल रहा। क्षेत्रवासियों ने खुशी में अलाव जलाए, खुशी मनाई और दुल्ला भंट्टी की प्रशंसा में यह शब्द कहे


'सुंदर मुंदरिए हो, तेरा कौन बिचारा हो'


'दुल्ला भंट्टी वाला हो, दुल्ले दी धी ब्याही हो'।